थक कर बैठ गए क्या भाई ?
अब सुबह होने को आई.
जीवन तो बहता रहता है
मानव हर कुछ सहता है
सहता है पर बढ़ता है
मानव मूल्य निखरता है .
जोर लगा कर काम करो
धीरज धर कर जतन करो
और अगर कुछ पाना है
तो बिल्कुल ना घबराना है
डर के आगे जीत है
मन में कोई मनमीत है
स्वप्न लिए तुम नैनों में
रात और दिन संघर्ष करो
मेहनत करने वाले को
कुछ कर दिखलाने वाले को
डर नहीं अंधियारों से
आशा के दीपक नैनों में अग्रिम पथ प्रशश्त करे.
अंधियारों से डरों नहीं
आगे बढ़ते जाओ तुम ,
तुम भरत के कुल वंशज हो
अंधेरों से तुम डरते हो ?
थकों नहीं हटो नहीं तुम
आगे बढ़ते जाओ तुम ,
नयी सुबह होने को आई
नन्ही सब कलियाँ मुस्काई
थक कर बैठ गए क्या भाई ?
नयी सुबह होने को आई ..
-- अतुल भास्कर
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